
अभी भी पंकज और उसके परिवारीजनों को सही होने के लिए लाखों रुपए की जरूरत है। मगर दुर्भाग्य है कि सुनीता के पास अब एक फूटी पायी भी नहीं है। जिससे वह अपने सुहाग की जिंदगी बचा सके। और ताज नगरी आगरा में समाज सेवा का चोला पहनने वाले तमाम समाजसेवी हाथ पर हाथ रखे बैठे हैं। आखिरकार सुनीता अपने सुहाग को बचाने के लिए कॉलोनी वाले बस्ती वालों से रुपए दो रुपए 100 रुपए की भीख मांग रही है।
सुनीता की अगर बात मानी जाए तो 19 जून से अब तक खर्च हुए 2 लाख रूपय की रकम में बस्ती वालों ने 30 हज़ार रुपये चंदा करके मायके वालों ने 40 हज़ार रुपये चंदा करके दिया। सुनीता ने अपने घर का अनाज बेचकर 15000 और भैंस बेचकर 40000 रूपये डॉक्टरों को दिए हैं। इसके अलावा अब तक 11 खून की बोतल है चढ़ चुकी है। चंदा देने वाले बस्ती के लोग भी सुनीता की गरीबी और आर्थिक स्थिति पर रहम खाकर रात दिन मदद कर रहे हैं। मगर सवाल इस बात का है कि जिस बस्ती में सुनीता रहती है। वह बस्ती गरीब आवासीय योजना है यानी बस्ती वाले भी एक लिमिट का इलाज के लिए चंदा दे सकते हैं। अपने सुहाग को सकुशल करने और दोबारा से पैरों पर खड़ा करने के लिए सुनीता सुबह 6:00 बजे घर से निकलती है साथ में मासूम बच्ची अपनी मां के साथ हर एक दरवाजे की कुंडी खटखटाती है। और झोली फैलाकर रुपए दो रुपए सो रुपए इलाज के लिए भीख मांगती है और बस्ती वाले भी जब सुनीता की शक्ल देखते हैं तो चुपचाप उसकी झोली में अपनी सामर्थ्य अनुसार रकम डाल देते हैं। अब तक तकरीबन 10 दिन का समय बीत चुका है। इलाज में पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है। घर के बर्तन बजने लगे हैं मासूम बच्चे दूध और अनाज को बिलखने लगे हैं। उधर इलाज के लिए रुपए की जरूरत है। मगर उत्तर प्रदेश सरकार के वो तमाम वायदे और दावे ताज नगरी आगरा में फेल हो रहे हैं जहां सरकार हर गरीब को आवास और चिकित्सा मुहैया कराने का दावा करती है। अभी तक सुनीता को सरकारी इलाज की मदद नहीं हो सकी है। और प्राइवेट अस्पताल में सुनीता का पति मौत और जिंदगी से जूझ रहा है।
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